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Friday 25 July 2014

नारी शिक्षा नारी /सशक्तिकरण:







          नारी शिक्षा
                                                                                       
आज की बिटिया कल की नारी है।
वही इंदिरा, दुर्गा, लक्ष्मी, किरन,
अन्नपूर्णा और जग कल्याणी है।
इनकी अपनी अलग कहानी है,
बिटिया के जन्म का उत्सव मनाओ।
पढ़ा-लिखाकर उसे काबिल बनाओ॥

बेटा-बिटिया में भेद-भाव करना सरासर अन्याय है,
इसी भेद-भाव के कारण तो आज इनका घटता अनुपात है।
उनमें से तो कुछ चढ़ा दी जाती है, दहेज की बलि,
कुछ कुपोषण के कारण खिलने से पूर्व ही मुरझाती है कली,
कुछ होती जा रही हैं दुराचार और शोषण की शिकार॥

यदि ऐसे ही घटता रहा इनका अनुपात,
तो घर-परिवार और देश को चलाएगा कौन?
सोचो ज़रा सब तरफ बढ़ेगा अत्याचार और बलात्कार।
जैसे एक पहिए से गाड़ी नहीं चल पाएगी,
वैसे ही नारी के बिना क्या यह दुनिया चल पाएगी?

जैसे नल होगा बिना पानी के,
वैसे ही नर रहेगा बिना नारी के।
नारी ही तो है जन-जन की जननी,
वही रखती ख्याल सबका दिन-रात॥


नारी ही तो चलाती है,
घर,समाज,देश और संसार।
नारी से बढ़कर कोई नहीं,
इनकी महिमा अपरंपार॥

जहाँ इनको मिलता है सम्मान,
वहीं रमते हैं श्री भगवान।
हर जन, समाज, और सरकार से
है विनती हमारी।
लड़कियों को सबल बनाएँ,
और दें इन्हें सुविधाएँ सारी॥

पढ़ी-लिखी बालिका पर ही टिकी हैं,
परिवार, समाज और देश की उम्मीदें सारी।
घर-घर में होता है दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का अवतार,
यह कथा नहीं सच्चाई है, इसे स्वीकारने से मत करें इन्कार॥

इस धरती को स्वर्ग बनाओ,
बिटिया को सँवारो, पढ़ाओ और सबल बनाओ।
बिटिया के जन्म का उत्सव मनाओ,
पढ़ा-लिखाकर उसे काबिल बनाओ॥
-   











राम प्यारे सिंह शास्त्री
M.A. (Hindi-Sanskrit), B.Ed.
                           PGD.RD. (Rural Development), C.I.G. (Guidance)
                                               C.TET. , AP.SET. , NET.






प्रबन्धन एवं योग्यता

अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं 
अयोग्यः पुरुषः नास्तियोजकः तत्र दुर्लभ
— 
शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोईमन्त्र  शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़नही है , जिससे कोई औषधि  बनती हो और कोई भी आदमीअयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजरही दुर्लभ हैं 

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कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥
 पंचतंत्र
जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है?
विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ?

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